9303753286127016 Que : 13. अभिक्रमित अनुदेशन को स्पष्ट कीजिए।

Que : 13. अभिक्रमित अनुदेशन को स्पष्ट कीजिए।

 

Que : 13. अभिक्रमित अनुदेशन को स्पष्ट कीजिए।

Answer:  अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ– अभिक्रमित अधिगम शैक्षिक सामग्री को छोटे–छोटे पदों में विभाजित कर, उसे इस तरह तारतम्ययुक्त या श्रृंखलाबद्ध करने की प्रक्रिया है, जिसके सहारे अधिगमकर्ता (सीखने वाला) जहाँ तक जानता है, उससे आगे के अज्ञातु (न जानने वाले) तथा नवीन ज्ञान को स्वयं ही सीख सके। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि अधिक्रमित अनुदेशन, शिक्षण अधिगम की एक विधि हैं जिसमें अधिगम के स्त्रोतों, साधनों तथा सामग्रियों को नियोजित एवं संगठित करने का प्रयत्न इस तरह किया जाता है, जिससे अधिगमकर्ता शिक्षण के सुनिश्चित उद्देश्यों तक पहुंच जाए।

सामान्यतः हम यह कह सकते हैं कि अभिक्रमित अनुदेशन व्यक्तिश: अनुदेशन की ऐसी विधि है जिसमें अधिगमकर्ता सक्रिय रहता है, तत्काल प्रतिपुष्टि करता है एवं अपनी गति से सीखते हुए बढ़ता है।


अभिक्रमित अनुदेशन की परिभाषाएँ :


डी.एल. कुक का कहना है, “अभिक्रमित अधिगम, स्वशिक्षण विधियों के व्यापक सम्प्रत्यय को स्पष्ट करने हेतु प्रयुक्त एक विधा है।"

जेम्स ई. एस्पिच एवं बिर्ल विलियम्स के अनुसार, “अभिक्रमित अनुदेशन अनुभवों का वह नियोजित क्रम है जो उद्दीपक अनुक्रिया संबंध के रूप में कुशलता तथा सक्षमता की तरफ ले जाता है।'

लीथ के विचार में; “अभिक्रमित अनुदेशन, अनुदेशन सामग्री के छोटे–छोटे पदों या फ्रेमों की एक श्रृंखला है। इन पदों में से अधिकांश में अनुक्रिया के लिए किसी वाक्य में रिक्त स्थान की पूर्ति करनी होती है। अपेक्षित अनुक्रियाओं हेतु किसी संकेत प्रणाली का प्रयोग किया जाता है तथा हर अनुक्रिया की पुष्टि परिणामों के तत्काल ज्ञान द्वारा की जाती है।

एन.एस.मावी के अनुसार, “अभिक्रमित अनुदेशन, सजीव, अनुदेशात्मक प्रक्रिया को 'स्वयं–अधिगम्' या स्वयं अनुदेशन में परिवर्तित करने की वह तकनीक है जिसमें विषय–वस्तु को छोटी–छोटी कड़ियों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें सीखने वाले को पढ़कर अनुक्रिया करनी होती है, जिसके सही या गलत होने का उसे तुरन्त पता चल जाता है।“


अभिक्रमित अधिगम/अनुदेशन की विशेषताएँ :


अभिक्रमित अध्ययन सामग्री की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं–

1. अभिक्रमित सामग्री व्यक्तिनिष्ठ होती है तथा इसमें एक समय में सिर्फ एक ही व्यक्ति सीखता है।

2. अभिक्रमित पाठ्य–सामग्री को छोटे से छोटे अंशों में विभाजित किया जाता है।

3. अभिक्रमित सामग्री के छोटे–छोटे अंशों को श्रृंखलाबद्ध किया जाता है।

4. अभिक्रमित सामग्री में हर पद् अपने आगे वाले पद से तार्किक क्रम में स्वाभाविक रूप से जुड़ा होता है।

5. छात्रों को तत्काल उनकी प्रगति के विषय में सूचना मिल जाती है कि उनका प्रयत्न सही था अथावा गलत। इस तरह तत्काल पृष्ठपोषण उन्हें मिलता रहता है

6. छात्रों को अपनी गति से विषय–वस्तु के अवसर प्राप्त होते हैं।

7. अभिक्रमित सामग्री पूर्ण परीक्षित एवं वैध होती है।

8. सीखने वाले को सक्रिय सतत प्रयत्न (अनुक्रिया) करने पड़ते हैं।

9. अभिक्रमित सामग्री में छात्रों के पूर्व व्यवहारों एवं धारणाओं का विशिष्टीकरण किया जाता है। इन व्यवहारों में भाषा की सरलता एवं बोधगम्यता का स्तर, उपलब्धि स्तर, पृष्ठभूमि और मानसिक स्तर को भी ध्यान में रखा जाता है।

10. अभिक्रमित उद्दीपन, अनुक्रिया एवं पुनर्बलन, ये तीनों तत्व क्रियाशील रहते हैं।

11. अभिक्रमित सामग्री सीखने में अपेक्षाकृत त्रुटियों की दर एवं गलतियों की दर काफी कम रहती है।

12. अभिक्रमित सामग्री में पृष्णपोषण तुरन्त मिलता है, अतः छात्रों की सही अनुक्रियाएँ पुनर्बलित हो जाती हैं, जिससे प्रभावशाली शिक्षण में मदद मिलती हैं।


अभिक्रमित अनुदेशन के मूल तत्व :

अभिक्रमित अनुदेशन के मूल तत्व निम्न हैं–

1. छात्र–नियन्त्रित अनुदेशन– इस अनुदेशन में छात्रों को पूरा महत्व दिया जाता है अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री तैयार करने में छात्र नियन्त्रित' अनुदेशन क्रम अन्य किसी अधिगम क्रम की तुलना में ज्यादा प्रभावशाली है। अत: इसका प्रयोग अनुदेशन सामग्री बनाते समय प्रारंभ में करना चाहिए। बाद में उद्देश्यों से सम्बन्ध स्थापित करते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए। इसके द्वारा अनुदेशन को छात्र–केन्द्रित बनाने में मदद मिलती है।

2. अभिक्रमित पाठ्य–वस्तु– रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन में पाठ्य–वस्तु को छोटे–छोटे पदों में बाँटा जाता है, जिसमें हर पद हेतु छात्रों को अनुक्रिया करनी पड़ती है। यही 'रेखीय अभिक्रमित पाठ्य–वस्तु' कहलाती है। शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री में दो तरह के–

(1) गृह पृष्ट एवं

(2) त्रुटि पृष्ट होते हैं, जो मिलकर ‘स्क्रैम्बल्ड पाठ्य–वस्तु' कहलाती है

3. उत्तरोत्तर समीपता– अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री में अधिगमकर्ता पहले जो अनुक्रियाएँ करता है, उसे पुनर्बलित किया जाता है। अन्तिम व्यवहार तक पहुंचने हेतु जिन–जिन क्रियाओं की जरूरत पड़ती है उन्हें छोटे–छोटे पदों की तार्किक क्रमबद्ध व्यवस्था के अनुसार बाँट दिया जाता है। हर पद पर पुनर्बलन प्रदान करते हुए उत्तरोत्तर समीपता के आधार पर अधिगमकर्ता की अनुक्रियाओं को अन्तिम व्यहार के समीप पहुंचाते हैं।

4. अवरोह श्रृंखला– निपुणता स्तर पर पहुंचने हेतु रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन में आरोही श्रृंखला का अनुकरण किया जाता है। लेकिन टी.एफ. गिलबर्ट ने अपने अनुदेशन में अवरोह श्रृंखला का प्रयोग किया। इस श्रृंखला में आरोह श्रृंखला के विपरीत, श्रृंखला के अन्तिम बिन्दु से प्रारंभ करते हैं तथा श्रृंखला के प्रारम्भ पर पहुंचकर अन्त करते हैं। जैसे उल्टी गिनतियाँ अथवा पहाड़े याद करना (100 से प्रारम्भ करके 1 तक आना) यह श्रृंखला गणित में ज्यादा उपयोगी पायी जाती है।

5. निदान एवं उपचार– निदान एवं उपचार के सिद्धान्त से तात्पर्य है, छात्रों की कठिनाइयों, कमजोरियों का निदान करके उन्हें उपचारात्मक अनुदेशन प्रदान करना। शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन में अगर छात्र गलत अनुक्रिया करता है तब उसकी कठिनाई, गलती अथवा कमजोरी का पता चलता है, जिसके लिए उसे त्रुटि–पृष्ठ पर उपचारात्मक अनुदेशन प्राप्त होता है तथा वह गलती सुधारने हेतु उपयुक्त निर्देश भी सामग्री से प्राप्त करता है।

6. क्रमागत प्रगति– अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री में छात्रों को उनके पूर्व व्यवहार श्रृंखला से धीरे–धीरे प्रारंभ करके अन्तिम व्यवहार तक क्रमागत प्रगति माध्यम से ले जाया जाता है। क्रमागत प्रगति में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि छात्र धीरे–धीरे अनुक्रियाएँ करते हुए जटिल व्यवहारों को विकसित करें। सामग्री के हर पद में ऐसी व्यवस्था होती है जिससे किसी छात्र की पिछली अनुक्रियाएँ आगे की अनुक्रियाओं से सम्बन्ध स्थापित करते हुए छात्रों को प्रगति पथ पर धीरे–धीरे आगे बढ़ाती जायें।

7. उद्दीपन एवं अनुक्रिया– ऐसी परिस्थिति, घटना अथवा व्यक्ति या वातावरण में परिवर्तन, अगर छात्रों के व्यवहार में भी परिवर्तन लाते हैं, तो इन्हें उद्दीपन कहा जाता है। उद्दीपन एक विशिष्ट अनुक्रिया हेतु परिस्थिति पैदा करता है। अभिक्रमित अनुदेशन में विषय–वस्तु के छोटे–छोटे पदों को तार्किक क्रम में पेश किया जाता है। ये हर छोटे–छोटे पद उद्दीपन का कार्य करते हैं एवं ये ही पद् उद्दीपन के रूप में छात्रों को अनुक्रियाएँ करने हेतु (समुचित परिस्थिति पैदा कर) तैयार करते हैं। सही उद्दीपन छात्रों को समुचित एवं सही अनुक्रियाएँ करने हेतु निर्देशन प्रदान करता है तथा नवीन ज्ञान देता है।

अनुक्रिया– अनुक्रिया व्यवहार की वह इकाई है जो जटिल व्यवहारों का निर्माण करती है। अनुक्रिया के तीन कार्य होते हैं–

(i) छात्र को अध्ययन में तत्पर रखना

(ii) नवीन ज्ञान देना एवं

(iii) सही समय पर पुनर्बलन प्रदान करना। अनुक्रिया, आंशिक अथवा पूर्ण रूप में हर अगले पद हेतु उद्दीपन का काम भी करती है। छात्रों को सही अनुक्रिया अधिगम को प्रभावशाली बनाने में सहायक होती है तथा गलत अनुक्रिया अधिगम में बाधक होती है

क्योंकि उद्दीपन एवं अनुक्रिया छात्र के व्यवहार परिवर्तन में मददगार होते हैं तथा व्यवहार परिवर्तन ही एक तरह अधिगम होता है, अत: वे दोनों अभिक्रमित अनुदेशन के मूल तत्व कहे जाते हैं।

8. पुनर्बलन– पुनर्बलन किसी क्रिया के पश्चात् घटने वाली एक ऐसी घटना है जो उस क्रिया को पुष्ट करती है। दूसरे शब्दों में, उस क्रिया के पुनः घटित होने की सम्भावना बढ़ जाती है। पुनर्बलन का सम्बन्ध वातावरण की उन घटनाओं से होता है जो किसी अनुक्रिया के करने की सम्भावना में वृद्धि करती हैं। नवीन व्यवहार या परिवर्तन छात्र की उन अनुक्रियाओं पर निर्भर होता है, जिन्हें उद्दीपनों से बल प्रदान किया जाता है। उद्दीपनों की वे घटनाएँ एवं परिस्थितियाँ जो अनुक्रिया को उत्पन्न करती हैं, पुनर्बलन कहलाती हैं।

9. उद्दीपन नियन्त्रण का स्थानान्तरण– अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री के प्रारंभ में जब छात्र उद्दीपन से जो अनुक्रियाएँ करता है, उनसे वह पहले से परिचित होता है। जैसे–जैसे वह आगे बढ़ता है अनुक्रियाएँ पूर्व व्यवहार तक पहुंचने में मदद करती हैं तथा अधिगम के क्रम में उद्दीपन नियन्त्रण आगे चलता रहता है। इसी को उद्दीपन नियन्त्रण का स्थानान्तरण कहा जाता है।

10. पृष्ठ–पोषण/प्रतिपुष्टि– पृष्ठ–पोषण अथवा प्रतिपुष्टि एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें छात्रों को उनकी कमियों, गलतियों एवं त्रुटियों से अवगत कराया जाता है, उन्हें सुधार सकें, साथ ही इस प्रक्रिया में छात्रों की अच्छी विशेषताएँ, अच्छे कार्य, उनके गुणों एवं उनकी अच्छाइयों का भी विवरण दिया जाता है ताकि वे इन्हें आगे भी अपने व्यवहारों में प्रदर्शित कर सकें। यह पुनर्बलन अनुक्रिया–की सम्भावना बढ़ाता है, जबकि पृष्ठपोषण व्यवहार में परिवर्तन लाने का एक सशक्त उपकरण है। पृष्ठपोषण प्रविधियाँ छात्रों के व्यवहारों में सुधार लाती हैं, उनकी विकास करती हैं एवं उनमें जरूरी परिवर्तन लाती हैं।

11. पुष्टिकरण– पुष्टिकरण, पृष्ठपोषण का ही एक रूप होता है, जिससे छात्रों को नवीन ज्ञान की प्राप्ति होती है तथा उन्हें पुनर्बलन भी प्राप्त होता है। छात्र अपनी अनुक्रियाओं के पुष्टीकरण के आधार पर क्रमानुसार पदों के माध्यम से आगे बढ़ते हुए शिक्षण सामग्री में सम्पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं।

12. अनुबोधन– अभिक्रमित अनुदेशन में छात्रों को हर पद हेतु अनुक्रिया करनी होती है, जिसके लिए एक अतिरिक्त उद्दीपन का प्रयोग किया जाता है। इसे ही अनुबोध कहा जाता है। अनुबोध अभिक्रमित, अध्ययन के फ्रेम में छात्रों की सही अनुक्रिया की खोज में पूरी मदद करते हैं। ये छात्रों को गलत अनुक्रिया करने से बचाते हैं।

13. सामान्यीकरण एवं विभेदीकरण– छात्रों में एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, कौशल तथा अभिवृत्ति आदि को उसी तरह की दूसरी परिस्थिति में समान तत्वों हेतु एक–सी अनुक्रिया करने की क्षमता सामान्यीकरण कहलाती है। सामान्यीकरण की प्रक्रिया में पहले विशिष्ट तथ्य, उदाहरण, दृष्टान्त छात्रों के सामने पेश किये जाते हैं तथा फिर उनके आधार पर छात्र सामान्य नियम या सिद्धान्त तक पहुंचने का प्रयत्न करते हैं। अवरोह अनुक्रमित अनुदेशन में सामान्यीकरण प्रक्रिया का ज्यादा प्रयोग किया जाता है।

विभेदीकरण में अलग–अलग अनुक्रियाओं हेतु पृथक् परिस्थितियाँ पैदा की जाती हैं। अतः कहा जा सकता है, विभेदीकरण, सामान्यीकरण के विपरीत प्रक्रिया होती है। शाखीय एवं मैथेटिक्स अभिक्रमित अनुदेशन में विभेदीकरण की प्रक्रिया का ज्यादा उपयोग किया जाता है।


अभिक्रमित अनुदेशन की सीमाएँ :

अभिक्रमित अनुदेशन की कमियों अथवा सीमाओं को निम्न रूप से देखा जा सकता है।

1. अभिक्रमित अनुदेशन, अनुदेशन प्रक्रिया की स्वाभाविकता को खत्म कर उसे यान्त्रिक प्रक्रिया बना देता है। छात्र, छात्र न रहकर मशीनी पुर्जे बनकर रह जाते हैं।

2. अभिक्रमित अनुदेशन की वैयक्तिक अनुदेशन की एक तकनीक माना गया है, लेकिन वास्तव में यह बात ठीक नहीं। हर छात्र को अधिगम में अपनी–अपनी गति से तो आगे बढ़ना होता है, लेकिन अधिगम सामग्री तो हर छात्र के लिए एक–सी होती है, सभी छात्रों को एक से तरीके से सीखना होता है तथा अभिक्रम में बताये हुए एक से रास्ते से ही आगे बढ़ना होता है।

3. कम्प्यूटर अथवा मशीन द्वारा शिक्षण होने से कक्षा में जो एक भावात्मक वातावरण बनता है उसका अभाव हो जाता है। शिक्षक अपने व्यक्तित्व से कई बातों हेतु छात्रों को प्रभावित करता है। इसमें एक प्रभाव का अभाव रहता है।

4. अभिक्रमित अनुदेशन का प्रयोग हर विषय के लिए किया जाना असम्भव है क्योंकि सभी विषयों तथा उनसे संबंधित प्रकरणों पर अभिक्रम का निर्माण किया जाना मुश्किल है।

5. अभिक्रमित अनुदेशन की सफलता सोच–समझकर बनाये हुए अभिक्रम पर आधारित होती है।

6. हर छात्र अपने अभिक्रम के अनुसार आगे बढ़ने के प्रयत्न में व्यस्त रहता है परिणामस्वरूप कक्षा में सामाजिकता की भावना का अभाव–सा हो जाता है।

7. अगर अभिक्रम में आरम्भ में ही छात्रों की अनुक्रिया गलत होने लगती है तो छात्रों की रुचि तथा अभिप्रेरणा कम होने लगती है, उसे पुनर्बलन से भी नहीं बढ़ाया जा सकता है।

8. यह तकनीक अनुदेशनात्मक उद्देश्यों में से ज्ञानात्मक उद्देश्यों को प्राप्त करने में तो मददगार हो सकती है, लेकिन भावात्मक तथा कौशलात्मक अथवा क्रियात्मक उद्देश्यों की तरफ कोई ध्यान नहीं देती है।

Balkishan Agrawal

At the helm of GMS Learning is Principal Balkishan Agrawal, a dedicated and experienced educationist. Under his able guidance, our school has flourished academically and has achieved remarkable milestones in various fields. Principal Agrawal’s vision for the school is centered on providing a nurturing environment where every student can thrive, learn, and grow.

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