विचारों को भाषा में अभिव्यक्त करने की अनंत संभावनाएँ छिपी होती हैं। कई बार हम छोटी-से-छोटी बात का वर्णन बहुत विस्तार से करते हैं, तो कई बार बहुत लंबी-चौड़ी विस्तृत बात को एकदम थोड़े शब्दों में व्यक्त कर लेते हैं। जिस प्रकार, छोटी-सी बात को विस्तार देना एक कला है, उसी प्रकार, विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त कर देना भी एक कला है। विस्तार से कही गई बात को कम शब्दों में व्यक्त करना ही सार-लेखन कहलाता है। आइए, इस पाठ में हम इस कला का अभ्यास करें।
उद्देश्य
- सार के अर्थ और उसकी उपयोगिता का उल्लेख कर सकेंगे
- सार और भाव-पल्लवन में अंतर बता सकेंगे
- सार-लेखन के विभिन्न रूपों का उल्लेख कर सकेंगे
- सार-लेखन की प्रक्रिया का वर्णन कर सकेंगे
- उपयुक्त भाषा-शैली में सार-लेखन कर सकेंगे।
सार-लेखन का अर्थ और उपयोगिता
आइए, हम समझें कि सार-लेखन क्या होता है और हमारे लिए उसकी क्या उपयोगिता है। यह तो आप जानते ही हैं कि हमारे जीवन में व्यस्तताएँ निरंतर बढ़ती ही जा रही हैं और समय का अभाव होता जा रहा है। आप यह भी जानते हैं कि मनुष्य के सारे क्रियाकलापों में भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आपने बहुतों को यह कहते सुना होगा – “जा-जा, काम करने दे, फालतू बातें मत कर।” इसका अर्थ हुआ कि फालतू बातें न करके उचित, उपयुक्त और संक्षिप्त बात करने का महत्त्व है। मतलब यह है कि भाषा का ऐसा प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे समय की बचत हो। अगर कम शब्दों का प्रयोग करेंगे, तो समय भी कम खर्च होगा और दूसरा आदमी भी हमारी बात ध्यानपूर्वक सुनेगा।
इसके अतिरिक्त संचार-क्रांति के इस युग में टेलीफ़ोन, फैक्स आदि पर पैसे भी बचेंगे। कम शब्दों में बात करना या लिखना एक कौशल है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इससे लाभ होता है। यह तो हुआ कम शब्दों में अपनी बात कहने का भाषाई कौशल। दूसरा एक और काम होता है- किसी दी हुई सामग्री को कम शब्दों में व्यक्त करने की कला; इसी को सार-लेखन कहते हैं। सार-लेखन में किसी दूसरे के द्वारा लिखी गई विस्तृत बात को |
उसका मूल भाव सुरक्षित रखते हुए कम शब्दों में प्रस्तुत किया जाता है। कम शब्दों में बात कहने का कौशल सार-लेखन में सहायक होता है और सार-लेखन के अभ्यास से भाषा में हमारी कुशलता बढ़ती है। विभिन्न क्षेत्रों में सार-लेखन की उपयोगिता है। अख़बारों में जगह के हिसाब से समाचार-संपादक समाचारों का सार-लेखन करते हैं। ‘आकाशवाणी’ और ‘दूरदर्शन’ पर समय के हिसाब से यही काम किया जाता है। कई बार लेखों, यहाँ तक कि पुस्तकों तक का सार तैयार किया जाता है। सरकारी कार्यालयों में भी सहायक द्वारा पत्रों और कभी-कभी तो पूरी फाइल का सार-लेखन किया जाता है।
सार-लेखन और भाव-पल्लवन में अंतर
सार-लेखन और भाव-पल्लवन के अंतर को आगे दिए गए आरेख द्वारा समझा जा सकता है
चित्रों से बात स्पष्ट हो गई न ? मूल सामग्री में विस्तार होता है। स्पष्ट है कि समझाने के लिए बातें विस्तार में कही जाती हैं। उसका मूल भाव या सार छोटा होता है और संक्षेप में लिखा जा सकता है। इसीलिए, आरेख में सामग्री वाली लकीर लंबी है, सार वाली लकीर सामग्री वाली लकीर की एक तिहाई है। सार-लेखन प्रायः मूल सामग्री का एक-तिहाई होता है। इसी प्रकार से, दूसरे आरेख में सूक्ति वाली लकीर छोटी है। सूक्ति तो एक-आध पंक्ति की ही होगी न ! जैसे, इसी सूक्ति को लें- ‘सत्यमेव जयते’ सत्य की ही जीत होती है- यह मूल भाव है। भाव-पल्लवन में इस मूल भाव को ही स्पष्ट करना होता है। कई उदाहरण आदि के द्वारा या कई तरह से कह कर इस सूक्ति को स्पष्ट करते हैं।
यह मूल भाव को फैलाना या पल्लवित करना हआ। अतः भाव-पल्लवन वाली लकीर लंबी है। आप आरेखों में यह भी देख रहे होंगे कि सूक्ति या भाव-पल्लवन के विषय वाली पंक्ति, सार वाली पंक्ति से भी छोटी है। जैसा हमने देखा, सार तो फिर भी मूल सामग्री का एक तिहाई होता है, किंतु सूक्ति एक वाक्य की या वाक्यांश वाली भी हो सकती है।
सार-लेखन के रूप
आप जान चुके हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में सार-लेखन की क्या उपयोगिता है। अलग-अलग क्षेत्रों, विषयों या कामों के लिए, सार-लेखन के कई अलग-अलग रूपों का प्रयोग किया जाता है। आइए, उनमें से कुछ के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं :
- अधिक शब्दों में लिखी बात को कम शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता समाचार-लेखन में होती है, या फैक्स करने में होती है, आदि-आदि। ऐसा प्रायः भाषा में अनेक शब्दों या वाक्यांशों के लिए एक शब्द का प्रयोग करके, शब्दों के दुहराव या अनावश्यक शब्दों को छाँट कर तथा वाक्य-विन्यास की शिथिलता को दूर करके किया जाता है।
- विस्तृत लेख को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते समय पहले उसके मूल भाव या विचार-बिंदु तथा उसे पुष्ट करने वाले संबंधित बिंदुओं को नोट कर लेते हैं। फिर ऊपर वाली विधि की सहायता से उसे संक्षेप में व्यक्त कर देते हैं। उपर्युक्त सभी स्थितियों में सार-लेखक मूल सामग्री को प्रायः कई बार गौर से पढ़ कर अपनी भाषा में उसका सार प्रस्तुत कर देता है। किंतु, साहित्यिक रचनाओं – उपन्यास, कहानी आदि का सार प्रस्तुत करते समय यह प्रयास किया जाता है कि लेखक की भाषा और शैली भी यथासंभव बची रहे।
अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
अभी आपने पढ़ा कि अभिव्यक्ति में कसावट लाने के लिए अनेक शब्दों अथवा वाक्यांशों के लिए एक शब्द का प्रयोग किया जाता है। हिंदी में ऐसे असंख्य शब्द हैं, जिनका प्रयोग करके पूरे-पूरे वाक्यांशों को एक शब्द में अभिव्यक्त किया जा सकता है। आइए, हम इनमें से कुछ पर नजर डालें :-
वाक्यांश | शब्द |
भले-बुरे का विचार न रखने वाला | अविवेकी |
जिसे क्षमा न किया जा सके | अक्षम्य |
जिसे कोई जीत न सके | अजेय |
ऐसे स्थान पर रहना, जिसका कोई पता न पा सके | अज्ञातवास |
बहुत बढ़ा-चढ़ा कर कही गई बात | अत्युक्ति |
जिसके समान कोई दूसरा न हो | अद्वितीय |
जो निंदा के योग्य न हो | अनिंद्य |
जिसके बिना काम न चल सके | अनिवार्य |
वह नियम, जो व्यापक नियम के विरुद्ध हो | अपवाद |
जिसका विवाह न हुआ हो | अविवाहित |
जिस पर अभियोग चलाया जाए | अभियुक्त |
जिस पर विश्वास किया जा सके | विश्वसनीय |
जो पहले कभी न हुआ हो | अभूतपूर्व/अपूर्व |
ईश्वर में विश्वास करने वाला | आस्तिक |
जड़ सहित नष्ट कर देना | उन्मूलन |
जिस मिट्टी में प्रचुर मात्रा में पैदावार होती हो | उपजाऊ |
जो काम से जी चुराता हो | कामचोर |
किसी वस्तु को देखने या बात को जानने की प्रबल इच्छा । | कुतूहल |
उपकार को मानने वाला | कृतज्ञ |
उपकार/एहसान को न मानने वाला | कृतघ्न |
किसी टूटे या गिरे हुए मकान या इमारत का बचा हुआ | भाग खंडहर/भग्नावशेष |
वह मनुष्य, जिसने किसी घटना को साक्षात् देखा हो । | गवाह/साक्षी |
जो दया का पात्र हो | दयनीय |
बहुत दूर तक की बात सोचने वाला | दूरदर्शी |
स्थल का वह भाग, जो चारों ओर से जल से घिरा हो | द्वीप |
किसी रास्ते से कहीं घुसने या जाने की रुकावट | नाकाबंदी |
जिससे हानि या अनर्थ की आशंका न हो | निरापद |
वह स्थान जहाँ कोई मनुष्य न हो | निर्जन |
जिस पर कोई विवाद न हो | निर्विवाद |
जिसके हाथ में कोई शस्त्र न हो | निहत्था/निःशस्त्र |
साफ़ या शुद्ध किया हुआ | परिष्कृत |
दूसरों के साथ भलाई का व्यवहार करने वाला | परोपकारी |
जिसके आर-पार दिखाई दे सके | पारदर्शी |
एक बार कही गई बात को फिर से कहना | पुनरुक्ति |
पहले जैसा ही | पूर्ववत |
किसी लिखी हुई चीज़ की नकल | प्रतिलिपि |
किसी काम में दूसरे से आगे बढ़ जाने की होड़ | प्रतिस्पर्धा |
जिसे देखकर भय होता हो | भयानक |
जो कम खर्च में काम चलाता हो | मितव्ययी |
जिस पर कुछ विचार करने की आवश्यकता हो | विचारणीय |
वह जो वेतन लेकर काम करता हो | वेतनभोगी |
मेहनत करके पेट पालने वाला व्यक्ति | श्रमजीवी/मेहनतकश |
जिसके बेढंगेपन पर लोग हँसी उड़ाएँ | हास्यास्पद |
हित या भला चाहने वाला | हितैषी |
किसी के रूप-रंग आदि का विवरण | हुलिया |
सार-लेखन की प्रक्रिया
सार-लेखन करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। इन्हें नीचे दिया गया है :
सार लेखन के चरण
- मूल बिंदु का चयन
- संबंधित बिंदुओं का चयन
- मूल और संबंधित बिंदुओं को क्रम देना
- अनावश्यक सामग्री को छोड़ना
- उपयुक्त आकार में सार लिखना
आइए, हम एक-एक करके इन पर विचार करें :-
- आप किसी भी गद्यांश को पढ़ने पर पाएँगे कि लेखक उसमें विशिष्ट रूप से किसी बात पर पाठक का ध्यान केंद्रित करना चाहता है, यही उस गद्यांश का मूल भाव होता है। गद्यांश को दो-तीन बार पढ़कर उसके मूल भाव को समझा जा सकता है।
- इस मूल भाव को स्थापित करने के लिए उससे संबंधित कुछ बातें और लिखी जाती हैं, जिनसे मूल भाव की पुष्टि होती है। ये संबंधित बिंदु कहे जाते हैं। |
- सार-लेखक को मूल भाव और उसको पुष्ट करने वाले संबंधित बिंदुओं को पहचान कर उन्हें अपने लिए एक क्रम देना होता है।
- अपने लेख को स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए और लेख के मूल भाव को स्पष्ट करने के लिए लेखक उसकी व्याख्या करता है तथा अनेक उदाहरण देता है। आवश्यकता पड़ने पर वह उस भाव को दोहराता भी है। मूल भाव की पहचान के साथ-साथ हमें उन सब बातों को भी पहचानना होता है, जिन्हें लेखक अपने मूल भाव को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त करता है। ये हैं :
(क) व्याख्या
(ख) उदाहरण
(ग) दोहराव
सार-लेखक के लिए ये बातें अनावश्यक सामग्री होती हैं। श्रेष्ठ सार-लेखन के लिए इन्हें पहचानना भी अत्यंत आवश्यक है।
आइए, एक उदाहरण से हम इस बात को समझने की कोशिश करें :
भारत का काव्य-रूपी आकाश–मंडल अगणित प्रभापूर्ण जुगनुओं से देदीप्यमान है, पर तुलसीदास का तेज, उज्ज्वलता और चमत्कार तथा उनकी प्रदीप्त कांति और कीर्ति सबसे बढ-चढ कर है। वे इस आकाश मंडल के असंख्य तारों के बीच मध्याहनकालीन प्रचंड मार्तंड के समान प्रकाशमान हैं। किसी ने कहा भी है कि तुलसीदास हमारे ही नहीं, हमारी आगामी संतानों के लिए भी एक अनुकरणीय और अनुपम आदर्श हैं। जो स्थान अंग्रेजी साहित्य में शेक्सपीयर का है, उससे कहीं ऊँचा स्थान हम हिंदी साहित्य में तुलसीदास को देते हैं। और क्यों न दें, ये कोरे कवि नहीं थे, वरन् ये तो एक अद्वितीय चरित्र वाले कवि-सम्राट, परमोच्च श्रेणी के संत, राम के अनन्य भक्त, धर्म और नीति के पथ-प्रदर्शक, दार्शनिक, गंभीर तत्त्वों को सरल-सरस शब्दावली में समझाने वाले उपदेशक और भविष्य के गर्भ में निहित घटनाओं को बताने वाले महात्मा भी थे।
अनुच्छेद के मूल भाव को समझने का प्रयास करें।
- आपने ठीक समझा, इस गद्यांश का मूल भाव है – कवि तुलसीदास की महत्ता।
- इस मूल भाव को पुष्ट करने वाले संबंधित बिंदु हैं : –
(क) भारत में असंख्य श्रेष्ठ कवि हैं।
(ख) तुलसीदास उनमें अधिक श्रेष्ठ हैं।
(ग) वे कोरे कवि ही नहीं, बल्कि चरित्रवान, रामभक्त, महात्मा, दार्शनिक, पथ-प्रदर्शक, सरल भाषा में गूढार्थ बताने वाले उपदेशक और भविष्य-द्रष्टा भी थे।
- ऊपर इन बिंदुओं को व्यवस्थित क्रम भी दे दिया गया है।
- उक्त गद्यांश के कौन-कौन से अंश व्याख्या, उदाहरण और दोहराव की कोटि में आते हैं
- वे इस आकाश-मंडल के असंख्य तारों में मध्याह्नकालीन मार्तड के समान प्रकाशमान हैं – यहाँ तक इसी बात की व्याख्या की गई है कि तुलसी का तेज काव्य-रूपी आकाश-मंडल में सर्वाधिक बढ़-चढ़ कर है।
- अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए लेखक ने शेक्सपीयर का उदाहरण दिया है।
- वे अद्वितीय चरित्र वाले कवि-सम्राट, परमोच्च श्रेणी के महात्मा थे – इससे आगे इसी भाव की व्याख्या है और ऊपर आए भाव को दोहराया गया है।
- अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए लेखक निम्नलिखित भाषाई कौशलों का प्रयोग भी करता है :
- मुहावरे-लोकोक्तियाँ
- कथाएँ
- अलंकार
- सूक्तियाँ और उदाहरण
- विशेष शैली
उक्त गद्यांश में ‘बढ़-चढ़कर होना’ मुहावरा है। ‘काव्य-रूपी आकाश’ में रूपक अलंकार है। किसी ने कहा है’ वाक्य में उदाहरण है। ‘अगणित प्रभापूर्ण जुगनुओं ….. वाक्य में दो विशेषण हैं और बहुत-सी संज्ञाएँ। ‘क्यों न दें’ विशेष शैली का प्रयोग है।
अब हम उक्त गद्यांश का सार लिखने के लिए तैयार हैं, लेकिन एक बात का ध्यान रखना है। सार लिखते समय भाव तो लेखक का रखना होता है, किंतु भाषा अपनी रखनी होती है। लेखक की भाषा लेने पर उपयुक्त सार-लेखन बहुत कठिन हो जाता है।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम उक्त गद्यांश का सार इस रूप में कर सकते
भारत में असंख्य श्रेष्ठ कवि हैं, पर तुलसीदास उनमें अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं: क्योंकि वे कोरे कवि ही नहीं, बल्कि चरित्रवान, रामभक्त, महात्मा, दार्शनिक, पथप्रदर्शक, सरल भाषा में गूढार्थ बताने वाले उपदेशक और भविष्यद्रष्टा भी थे।
आपने देखा, कि यह सार मूल गद्यांश का लगभग एक तिहाई है। सार लिखने के बाद यह भी अवश्य देख लेना चाहिए कि कोई महत्त्वपूर्ण बिंदु छूट तो नहीं गया और कोई अनावश्यक बात तो नहीं लिखी गई। अपनी भाषा भी चुस्त-दुरुस्त कर लेनी चाहिए।
आइए, अब हम सार-लेखन के कुछ उदाहरण देखें :
गद्यांश-1
कहा जाता है कि मानव का आरंभिक जीवन अधिक लचीला और प्रशिक्षण के लिए विशेषकर अनुकूल होता है। यदि माता-पिता, अध्यापक और सरकार – तीनों मिलकर प्रयास करें, तो वे बालक को जैसा चाहें, वैसा वातावरण देकर उसकी जीवन-दिशा का निर्धारण कर सकते हैं। जीवन का यह समय मिट्टी के उस कच्चे घड़े के समान होता है, जिसके विकारों को मनचाहे ढंग से ठीक किया जा सकता है। लेकिन जिस तरह पके हए घडों में पाए जाने वाले दोषों में सधार करना असंभव है, उसी तरह यौवन की दहलीज़ को पार कर बीस-पच्चीस वर्ष के युवक के अंदर आमूल परिवर्तन लाना यदि असंभव नहीं, तो कठिन अवश्य है। कच्ची मिट्टी किसी भी साँचे में ढालकर किसी भी नए रूप में बदली जा सकती है,
लेकिन जब वह एक बार, एक प्रकार की बन गयी, तब उसमें परिवर्तन लाने का प्रयास बहुत ही कम सफल हो पाता है। किसी लड़के या लड़की के व्यक्तित्व के निर्माण का मुख्य उत्तरदायित्व हमारे समाज, हमारी सरकार और स्वयं माता-पिता पर है तथा बहुत कुछ स्वयं लड़के या लड़की पर भी। कोई भी व्यक्ति अपने ध्येय में तभी सफल हो सकता है, जब वह अपने जीवन के आरंभिक दिनों में भी वैसा करने का प्रयास करे । इस दृष्टि से विद्याध्ययन का समय ही मानव-जीवन के लिए विशेष महत्त्व रखता है। हम सभी का और स्वयं विद्यार्थियों का भी यही कर्तव्य है कि सभी इस तथ्य को हमेशा अपने सामने रखें ।
सार
बाल्य-काल मानव की वह अवस्था है, जिसमें उसके जीवन को मनचाहे ढंग से मोड़ा जा सकता है। युवावस्था प्राप्ति के बाद, उसकी जीवन-दिशा को बदलना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। कच्ची मिट्टी से इच्छा के अनुसार आकृति बना सकते हैं, पक जाने पर उसका रूप-परिवर्तन असंभव है। बालक हो या बालिका, उसके जीवन-निर्माण का उत्तरदायित्व सरकार, समाज और माता-पिता के कंधों पर है। उसके अपने प्रयास भी महत्त्वपूर्ण हैं। प्रारंभ से उस दिशा में प्रयत्न करने पर ही सफलता मिलती है।
गद्यांश-2
हमारे देश में अशिक्षित प्रौढ़ों की संख्या करोड़ों में है। यदि हम किसी प्रकार इनके मानस-मंदिरों में शिक्षा की ज्योति जगा सकें, तो सबसे महान धर्म और सबसे पवित्र कर्त्तव्य का पालन होगा। रेलगाड़ी और बिजली की बत्ती से भी अपरिचित लोगों का होना हमारी प्रगति पर कलंक है। प्रौढ़-शिक्षा योजना इनको प्रबुद्ध नागरिक बनाने की दिशा में क्रियाशील है। इस योजना से गाँवों में एक सीमा तक आत्मनिर्भरता आएगी। हर बात के लिए शहरों की ओर ताकने की प्रवृत्ति समाप्त होगी। निरर्थक रूढ़ियों और अंधविश्वासों में फंसे हुए और अपनी गाढ़े पसीने की कमाई को नगरों की भेंट चढ़ाने वाले ये हमारे भाई प्रौढ़ शिक्षा से निश्चित ही सचेत और विवेकी बनेंगे। स्वास्थ्य, सफाई, उन्नति, कृषि तथा आपसी सद्भावना के प्रति प्रौढ़ शिक्षा इनको जागरूक बना सकती है।
इससे इनकी मेहनत की कमाई डॉक्टरों की जेबों में जाने से और कचहरियों में लुटने से बचेगी। सबसे बड़ा लाभ तो प्रौढ़ शिक्षा द्वारा यह होगा कि करोड़ों लोग नए ढंग से देखने, सुनने और समझने के साथ-साथ अच्छा आचरण करने में समर्थ होंगे। हमारे करोड़ों देशवासी आज भी अशिक्षित और पिछड़े हुए हैं। सारे संसार के सामने हम इस कलंक को सिर झुकाए सह रहे हैं । भारत की उन्नति चंद नगरों को जगमग कर देने से नहीं होगी, उसकी सच्ची उन्नति का पैमाना तो यही ग्राम-समुदाय है जिसकी पढ़ने की आयु निकल चुकी, जो स्वयं पढ़ने के महत्त्व से अपरिचित हैं, जिसका तन-मन-धन नगरीय सभ्यता शताब्दियों से लूटती चली आ रही है। ऐसे अज्ञान और अशिक्षा के अंधकार में जीवन बिताने वाले करोड़ों भाइयों-बहनों के प्रति यदि हम आज सचेत और उत्तरदायी बनने की बात सोच रहे हैं, तो देश का बड़ा सौभाग्य है।
सार
अशिक्षित व्यक्ति समाज के लिए कलंक है। प्रौढ़-शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होंगे, नई दृष्टि से सोचने-समझने की शक्ति भी उनमें उत्पन्न होगी। साथ ही, वे शोषण के शिकार भी नहीं बनेंगे। भारत की उन्नति का अर्थ है – गाँवों की उन्नति। यह तभी संभव है, जब वहाँ के अधिक-से-अधिक नागरिक शिक्षित हों। प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम ही इसका एकमात्र उपचार है। इसे सफल बनाना हम सबका कर्तव्य है। इससे देश का गौरव बढ़ेगा।
सरकारी कार्यालयों में सार-लेखन
आप जानते हैं कि सरकारी कामकाज में हर फाइल में कागजों का ढेर बढ़ता जाता है। एक फ़ाइल में कागज़ों का निपटारा कई सीटों/डेस्कों/काउंटरों से गुज़र कर, कई अधिकारियों के हस्ताक्षरों से और कभी-कभी तो कई विभागों तक घूम कर हो पाता है। अतः समय को बचाने के लिए सहायक द्वारा पत्रों का सार तैयार कर दिया जाता है, ताकि आगे की कार्रवाई के लिए सभी पत्रों को अनिवार्य रूप से न पढ़ना पड़े। फ़ाइल पुरानी हो जाने पर प्रायः पूरी फाइल के महत्त्वपूर्ण बिंदु भी सबसे ऊपर लिख दिए जाते
सरकारी पत्रों का सार-लेखन करते समय भी मोटे तौर पर सार-लेखन के चरणों का पालन किया जाता है, साथ ही सबसे पहले क्रम-सं., अधिकारी का पद-नाम, संबधित विभाग/मंत्रालय, पत्र सं. तथा दिनांक का उल्लेख भी कर दिया जाता है।
आइए, सरकारी पत्र के सार का एक नमूना देखें :
मूल पत्र
पत्र-संख्या 520/15-20/11 मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
(शिक्षा विभाग)
नई दिल्ली, दिनांक 20 नवंबर, 2020
प्रेषक
श्री आर.एस. मल्होत्रा
उप-निदेशक, हिंदी शिक्षण विभाग
गृह मंत्रालय (भारत सरकार)
नई दिल्ली – 110001
सेवा में,
अवर सचिव,
संघ लोक सेवा आयोग,
नई दिल्ली।
विषय : अध्यापक द्वारा ‘हिंदी आलेखन तथा टिप्पण कला’ का विक्रय।
महोदय,
मुझे निर्देश हुआ है कि मैं आपसे यह ज्ञात करूँ कि आपके कार्यालय में कार्य करने वाले अध्यापक श्री सेवाराम शर्मा, जिनका अभी-अभी इस केंद्र से अन्यत्र स्थानांतरण हुआ है, ने आपके यहाँ स्वयं लिखित पुस्तक ‘हिंदी आलेखन तथा टिप्पण कला’ की प्रतियाँ उन छात्र-पदाधिकारियों को बेची हैं, जो उस समय हिंदी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, जो राजकीय नियमों के विरुद्ध है। यह भी ज्ञात हुआ है कि ये प्रतियाँ सौ-सौ रुपए में बेची गई थीं। अतः इस मामले की छानबीन कर शीघ्र ही लिख भेजने की कृपा करें, जिससे अध्यापक से शीघ्र ही उत्तर माँगा जा सके।
भवदीय
ह०/
(आर.एस. मल्होत्रा)
उप-निदेशक
सार
क्रम संख्या 25 – उप-निदेशक, शिक्षा मंत्रालय का पत्र संख्या 520/15-20/11 दिनांक 20.11.20
उप-निदेशक ने अपने पत्र में इस हिंदी केंद्र के अध्यापक श्री सेवाराम शर्मा के संबंध में लिखा है कि उन्होंने स्वयंलिखित पुस्तक ‘हिंदी आलेखन तथा टिप्पण कला’ को सौ रुपए प्रति पुस्तक के मूल्य पर बेचा है।
आपने बताया है कि स्वयं लिखित पुस्तकों को छात्रों में बेचना राजकीय नियमों के विरुद्ध है।
छानबीन कर शीघ्र उत्तर देने की अपेक्षा की गई है।
योग्यता विस्तार
- आप अख़बार तो पढ़ते ही होंगे। जरा उसमें से कुछ समाचारों की कटिंग निकाल लीजिए। अब सोचिए कि अगर आप समाचार-संपादक होते और इन समाचारों के लिए आपके पास एक-तिहाई स्थान ही होता तो आप उस समाचार को किस तरह लिखते और लिख भी डालिए।
- अगर इन्हीं समाचारों के लिए दूरदर्शन में आपके पास 45-45 सेकंड का समय है, तो इन समाचारों को आप कैसे लिखेंगे? लिखकर देखिए।
- व्याकरण की जो भी पुस्तकें उपलब्ध हो सकें, उनमें से ‘अनेक शब्दों के लिए एक शब्द’ वाली सूची पढ़ें और उन्हें याद करें ।